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क्या बिना जुटाई के कर सकते हैं फलों की खेती! जानें एक्सपर्ट की राय

09:00 AM Oct 30, 2024 IST | Vikash Beniwal

Zero Tillage Techniqu : फल वाली फसलों की खेती में शून्य जुताई तकनीक (Zero Tillage Technique) का उपयोग, पारंपरिक जुताई की तुलना में बेहद लाभकारी साबित हो सकता है। इस तकनीक के बारे में कृषि वैज्ञानिकों ने कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया है। खासकर, प्राणनाथ बर्मन, एसके शुक्ल और दुष्यंत मिश्र जैसे विशेषज्ञों ने बताया कि पारंपरिक जुताई से मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों पर नकारात्मक असर पड़ता है, और इससे मिट्टी की संरचना भी बिगड़ती है। इसके विपरीत, शून्य जुताई से भूमि की उर्वरा क्षमता में सुधार होता है, जिससे पौधों की वृद्धि और फल उत्पादन बेहतर होता है।

शून्य जुताई तकनीक का महत्व

पारंपरिक जुताई से मिट्टी में कम कार्बनिक पदार्थ रह जाते हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में कमी आती है। वहीं, शून्य जुताई से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों और पोषक तत्वों का चक्रण बढ़ता है, जिससे भूमि की उर्वरा क्षमता में वृद्धि होती है।

मिट्टी में पानी और हवा का संचरण

पारंपरिक जुताई से मिट्टी के छिद्र बंद हो जाते हैं, जिससे पानी और हवा का प्रवाह कम हो जाता है। शून्य जुताई से मिट्टी में हवा और पानी के लिए पर्याप्त स्थान मिलता है, जिससे पौधों की जड़ें अच्छी तरह से विकसित होती हैं।

खरपतवार नियंत्रण

शून्य जुताई में, खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए आवरण फसलों का उपयोग किया जाता है। ये फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर बढ़ाती हैं और मिट्टी की संरचना में सुधार करती हैं।

शून्य जुताई से किसानों को लाभ

शून्य जुताई से केवल मिट्टी ही नहीं, बल्कि किसानों की आय और उत्पादन में भी सुधार हो सकता है।

कम ऊर्जा और श्रम की आवश्यकता

पारंपरिक जुताई की तुलना में शून्य जुताई में कम श्रम और ऊर्जा का इस्तेमाल होता है। इससे किसानों की लागत में कमी आती है और वे अधिक लाभ कमा सकते हैं।

शून्य जुताई का फसल उत्पादन पर प्रभाव

मिट्टी की संरचना बिगड़ी हुई संरक्षित और उर्वर
पानी का संचरण कम अधिक
खरपतवार नियंत्रण कठिन आसान (आवरण फसलें)
उर्वरक का उपयोग अधिक कम
जैविक विविधता घटित बढ़ी हुई

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