Fungal cultivation: फसलों के रोगों से निपटने का जैविक तरीका, करें इस चीज की खेती
Fungal cultivation: किसानों के लिए खेती में नई तकनीकों और उपायों को अपनाना बहुत आवश्यक हो गया है, ताकि उत्पादन में वृद्धि हो सके और खर्चे कम हों। इसी दिशा में भोपाल के एक प्रगतिशील किसान मिश्रीलाल राजपूत ने फफूंद की खेती को अपनाकर फसलों में होने वाले रोगों से बचाव का एक अनोखा तरीका निकाला है। इस लेख में हम जानेंगे कि फफूंद की खेती कैसे फसलों को रोगों से बचाने में सहायक होती है और कैसे इसे घर पर ही तैयार किया जा सकता है।
फफूंद की खेती एक जैविक तरीका है, जिसमें पौधों और फसलों के लिए लाभकारी फफूंद तैयार की जाती है। यह फफूंद फसलों में होने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों को समाप्त करने में मदद करती है। जैसे, ब्लाइट, उकटा, शीत गलन, पौध गलन और शीत ब्लाइट जैसे रोगों को दूर करने में यह फफूंद अत्यंत प्रभावी साबित होती है।
यह फफूंद एक प्रकार के पौधों के मित्र बैक्टीरिया की तरह काम करती है, जो रोगों का कारण बनने वाले बैक्टीरिया को खा जाती है और फसलों को सुरक्षित रखती है। इस फफूंद का नाम ट्राइकोडर्मा हरर्जेनियम है, जो खासतौर पर घर के अंधेरे कमरे में उगाई जाती है। इसे चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का जैसे पदार्थों से तैयार किया जा सकता है।
मिश्रीलाल राजपूत के अनुसार, ट्राइकोडर्मा फफूंद तैयार करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है:
चावल, ज्वार, बाजरा या मक्का के दलिए का चयन करें। उबलते हुए पानी में चुने गए दलिए डालकर कुछ समय के लिए उबालें। उबाले हुए दलिए को एक चौड़ी तस्तरी या थाल में फैला दें। इसके बाद, चार-पाँच स्थानों पर ट्राइकोडर्मा फफूंद को लगाकर इस पर पॉलीथिन से ढक दें।
इसे 5 से 6 दिन के लिए अंधेरे कमरे में रखें। इस दौरान हरे रंग की परत का निर्माण होता है, जो फफूंद के तैयार होने का संकेत है। जब यह फफूंद पूरी तरह से तैयार हो जाती है, तो इसे फसलों पर छिड़काव के लिए उपयोग किया जा सकता है।
फफूंद की खेती के लाभ
घर पर यह फफूंद तैयार करना बहुत सस्ता है। डेढ़ एकड़ खेत के लिए इस फफूंद को सिर्फ 30 रुपए में तैयार किया जा सकता है, जबकि बाजार में यही दवा 800 रुपए में मिलती है। इस फफूंद के बैक्टीरिया फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया को समाप्त कर देते हैं, जिससे फसल रोगमुक्त रहती है।